THE SMART TRICK OF CHALAWA KI DAHSHAT EK SUCCHI KAHANI THAT NO ONE IS DISCUSSING

The smart Trick of Chalawa ki dahshat ek succhi kahani That No One is Discussing

The smart Trick of Chalawa ki dahshat ek succhi kahani That No One is Discussing

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एकांत पाते ही विभारानी जयति से मुखातिब हुई- “जयति, तुम अकेली क्यों और घर के नाम-पट पर –“यह घर मेरा .

गांव के मर्द खेतों से खरपतवार को हटा रहे हैं और खेतों में आग लगा कर झाड़- झंकड़ को साफ करने में लगे हैं।

मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गाँव में लोग जल्दी ही जग जाते है इसलिए शायद यह भी मेरी ही तरह जल्दी जग गया होगा और अपनी छत पर टहल रहा होगा। तो मैं भी व्यायाम करने लगा।

कुछ गांव के लोग अपने खेतों में गोट( खेतों में किसी कोने में दोनों तरफ छप्पर लगा कर उसमे अपने जानवरों को बांध कर कुछ समय वहीं उसी छप्पर में रहते हैं ताकि खेतों में ज्यादा से ज्यादा गोबर इकट्ठा हो सके) लगा रहे हैं। गेंहू की बुवाई का समय नजदीक आ गया है, इसलिए काम जल्दी जल्दी हो रहा है।

ठेकेदार—(दुखी मन से)बिटिया इसमें गलती इनकी नहीं।मेरी गलती है।मैं ही पैसों के लालच में पेड़ों को कटवा .

क्या विवाह करना ही किसी नारी के जीवन का मक़सद होना चाहिये ?

ये एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है, पहाड़ों में आज भी भूनी हुई किसी भी चीज को खुले में, अनजानी जगहों पर, रात में या कहीं जंगलों में खाने के लिए मना किया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने पर छलावा (भूत) उसे छल लेता है।

एक साथ कई तरह के भाव अलका के चेहरे पर आकर धमाचौकड़ी करने लगे। चिट्ठी हाथ में दबाए वह बहुत तेज़ी से द.

‘ बस पहुँच ही रहे हैं ।’ आलोक अंकल ने उत्तर दिया । उसकी स्थिति देखकर। .

थानेदार ने उस औरत को कानून की पैनी नज़रों से देखा। फिर अपने फर्ज की कैंची से उसकी बात बीच में ही काट .

उन्होने कहा कि वो एक छलावा था और छलावा बहुत ही ख़तरनाक होते हैं। तेरी जान इसलिए बच गयी क्यूंकि तेरे गले में यह माता रानी का रक्षा कवच था। तब मुझे याद आया कि यह तो मैंने थोड़े दिन पहले ही अपने गले में बांधा था।

अभी रात में खाना खाने के बाद हम सब ख्वाल ( गांव का एक छोटा मोहल्ला) में बाहर ही खटिया लगा के दादी से कहानी सुन रहे थे, कुछ तो अभी जुगनू पकड़ने में व्यस्त हैं, रात बहुत धीरे धीरे गहरा रही है और हम सब सोने की तैयारी करने लगे हैं, अभी नींद आईं ही थी कि सहसा गांव में हर तरफ शोर होने लगा, हलचल बढ़ गई, सभी उठ गए कि आखिर क्या माजरा है, बुजुर्ग आपस में बात करने लगे, और हम सब बच्चे डर के मारे अपने अपने माता पिता, दादी, दादा, ताई, से चिपक कर रोने लगे, समझ ही नहीं आ रहा था कि इतनी रात कौन शोर कर रहा है और क्यों ?

उस समय मेरे पैर जैसे जम ही गये थे। उस समय मैं खुद को कोसने लगा कि मैं ऊपर आया ही क्यों? अब मैं नही बचने वाला।

सभी बुजुर्ग आपस में मंत्रना कर रहे थे कि कैसे गिरीश को बचाया जाए, और हम सब सुन रहे थे कि कोई गांव का गिरीश भाई संकट में है, पर समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें आखिर हुआ क्या है ? और किस तरह से वो संकट में हैं ? अभी हम बुजुर्गो की बात सुन ही रहे थे कि एक जोर की आवाज गूंजने लगी कि उसे "केरी" (गांव की लक्ष्मण रेखा, जो गांव को बुरी बला से बचाती है) की तरफ ले जाने का प्रयास हो रहा है, और अगर उसने उसे "केरी" के बाहर ले गया तो फिर उसे कोई नहीं बचा सकता, हम सभी बच्चे, दादी, चाचियां सब परेशान,

डर से मैंने अपनी आँखे बंद कर ली। थोड़ी देर बाद मैंने आँखे खोल के देखा पर वहाँ कोई भी नहीं था।

उधर दूसरी ओर वो, गिरीश भाई को एक खेत से दूसरे खेत की ओर ले जा रहा था, और गिरीश भाई की जान संकट में थी, अगर शीघ्र उसे ना रोका गया तो वो, गिरीश भाई को मार देगा। सभी लड़के तेजी से भाग रहे थे, परन्तु पहाड़ में उकाल (चढ़ाई) में चढ़ना आसान नहीं होता, खेती सीढ़ी नुमा होती है जिससे एक खेत से दूसरे खेत में जाने में समय अधिक लगता है, फिर भी लड़के ऊपर खेत की ओर भागे जा रहे थे कि किस तरह से read more गिरीश को "केरी" पार करने से रोका जाए।

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